Wednesday, May 4, 2016

फिल्म शूटिंग के दौरान इन गैजेट्स और टेक्नोलॉजी का होता है इस्तेमाल




 फिल्मों दर्शकों के मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं। फिल्म में हीरो-हीरोइन के साथ डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और फिल्म से जुड़ी टीम शामिल होती है। ये टीम अपनी कई महीनों की मेहनत के बाद एक ऐसी फिल्म बनाती है, जो आपका मनोरंजन कर सके। कई बार को फिल्म के निर्माण में सालों लग जाते हैं। दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए बनाई गई इन फिल्मों में कैमरा, लाइट, माइक के साथ स्पेशल इफेक्ट्स का भी अहम रोल होता है।
मधेपुरा मैगज़ीन  अपनी 'मूवी टेक' सीरीज में आज आपको फिल्मों से जुड़ी टेक्नोलॉजी के साथ इस्तेमाल होने वाले गैजेट्स और स्पेशल इफेक्ट्स के बारे में बताने जा रहा है। जिनमें कैमरा, लाइट, इफेक्ट्स, एडिटिंग सॉफ्टवेयर सबकुछ शामिल है।
कैमरा :
किसी फिल्म को बनाने के लिए सबसे पहले एक कैमरा की जरूरत होती है। कैमरे की मदद से फिल्म को शूट किया जात है। कभी इंडस्ट्री में ब्लैक एंड व्हाइट कैमरा का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, अब 5K (5120×2880 पिक्सल रेजोल्यूशन) वाले कैमरे का इस्तेमाल किया जाता है। इन कैमरे से शूट होने वाली फिल्में फुल HD क्वालिटी से भी बेहतर होती हैं।

साल 1910 में फिल्म की शूटिंग के लिए Aeroscope कैमरे का इस्तेमाल किया गया था। ये हाथ में पकड़ने वाला पहला कैमरा था। इसके बाद धीरे-धीरे कैमरे की टेक्नोलॉजी बदलती चली गई। अब फिल्मों के लिए डिजिटल मूवी कैमरे इस्तेमाल में लाए जाते हैं। इनमें ज्यादातर कैमरा Arri कंपनी के होते हैं। इसके साथ RED, Sony, JVC, Canon के कैमरे भी फिल्म शूटिंग में इस्तेमाल होते हैं।

फिल्म के शॉट्स को फिक्स फ्रेम में शूट करना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए कैमरा स्टैंड का इस्तेमाल किया जाता है। ये स्टैंड कई तरह के होते हैं। इनमें ट्रॉली स्टैंड, ट्रैक स्टैंड, ट्राइपॉड शामिल होते हैं।

 कैमरा स्टैंड :

ट्राइपॉड : ट्राइपॉड किसी भी कैमरे में सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाला स्टैंड है। इस स्टैंड पर कैमरा रखकर मूव किया जाता है, जिससे शॉट्स की क्वालिटी बेहतर होती है।
ट्रॉली स्टैंड : इस स्टैंड में कैमरे को लटकाकर या फिर ट्रॉली में कैमरामैन खुद बैठकर शूट करता है। ये किसी क्रेन के जैसा स्टैंड होता है, जिसमें कैमरामैन बैठकर हवा में मूव करता है और टॉप एंगल से फिल्म के लिए शॉट्स लेता है।
ट्रैक स्टैंड : ये स्टैंड रेल की पटरी की तरह होता है। इस पटरी को सीधा और घुमावदार बनाया जा सकता है। ये शॉट्स के ऊपर डिपेंड करता है।

ड्रोन कैमरा :
एक समय फिल्म के शॉट्स ज्यादा ऊपर से लेने के लिए हेलिकॉप्टर या किसी ऊंची बिल्डिंग का सहारा लिया जाता था, लेकिन अब ये काम ड्रोन कैमरे की मदद से किया जाता है। रिमोट से चलने वाला ये ड्रोन हवा में बहुत ऊंचाई तक उड़ सकता है। इतना ही नहीं, ड्रोन कैमरे की मदद से पहाड़ों के ऊपर, समुंदर के ऊपर, जंगल में आसानी से शॉट्स लिए जा सकते हैं। ऐसे में ड्रोन कैमरा अब फिल्मों में अहम रोल प्ले करने लगा है।

निगेटिव (रील) या मेमोरी :
फिल्मों शूट करने के दौरान कैमरे में रील (निगेटिव) का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, अब इसके लिए मेमोरी कार्ड, हार्ड डिस्क का इस्तेमाल भी होने लगा है। इन दिनों कैमरे एडवांस टेक्नोलॉजी के आते हैं, जिनमें मेमोरी के तौर पर हार्ड डिस्क की सुविधा होती है। किसी फिल्म के निर्माण के बाद उसकी कई रील तैयार की जाती हैं, जो दुनियाभर के थिएटर में भेजी जाती हैं।
कम्प्यूटर्स या लैपटॉप :
फिल्म की शूटिंग जब पूरी हो जाती है तब उसकी एडिटिंग की बारी आती है। इसके लिए हेवी कम्प्यूटर या लैपटॉप की जरूरत होती है। हालांकि, इस तरह के सिस्टम का कोई फिक्स पैमाना नहीं है, लेकिन हेवी प्रोसेसर और ज्यादा से ज्यादा रैम होना जरूरी होता है। इसके साथ, इस तरह के सिस्टम में ग्राफिक्स कार्ड का होना भी जरूरी है। सिस्टम में एडिटिंग का हेवी सॉफ्टवेयर होता है, जिस पर कई इफेक्ट्स भी डाले जाते हैं।
सॉफ्टवेयर :
किसी फिल्म में कई सॉफ्टवेयर की जरूरत होती है। इसमें ग्राफिक्स के साथ स्पेशल इफेक्ट्स और कोई कैरेक्टर भी डिजाइन किया जाता है। Eyeon Fusion एक ऐसा ही पावरफुल नोड आधारित कम्पोजीशन सॉफ्टवेयर है। ये सॉफ्टवेयर फिल्मों, टेलीविजन, विज्ञापन, चिकित्सा, वास्तुकला में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इस सॉफ्टवेयर की मदद से 3D एनिमेशन और VFX पर काम किया जाता है।
इन सॉफ्टवेयर पर भी होता है काम :
Autodesk 3dsmax
Autodesk Maya
ZBrush
Motion Builder
Stop Motion Pro
V-Ray
Adobe After Effects
Adobe Photoshop
Final Cut Pro
Adobe Premiere
Nuke
GameBryo

इफेक्ट्स :
विजुअल इफेक्ट्स (VFX) :
फिल्ममेकिंग के दौरान विजुअल इफेक्ट्स (VFX) से किसी सीन को पूरी तरह अलग कर दिया जाता है। यानी लाइव शूट के दौरान किसी छोटी चीज को बढ़ा बना देना या फिर कल्पना करके कुछ ऐसा दिखा देना जिस पर यकीन हो जाए। इसे Computer Generated Imagery (CGI) भी कहते हैं।
स्पेशल इफेक्ट्स (SFX) :
सीधे कहा जाए तो स्पेशल इफेक्ट्स के जरिए दर्शकों को धोखा दिया जाता है। एक ऐसा सीन जो वास्तविक में नहीं फिल्माया गया, लेकिन फिल्म में दिखाया जा रहा है, तो वो स्पेशल इफेक्ट्स के जरिए किया जाता है।

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